संचित धन
रंज का नाता है दुनिया से , सिखाओ इसे प्यार से
मगर ये फानी है तो क्या हुआ
जीवन तो यहीं है दोनों के आकार से
प्यार के प्रकार से और मौत के विचार से
डर की बदबू आती है
सब मिलेंगे उस छोर पर ,गर पार कर सके तो
आदतें छूटती नहीं , इस बिगड़े हुए संसार में
कर सको तो बनाओ कुछ ,की दिया जले निरंतर
घरो में जहाँ है अँधेरा, मिलके मिटाओ उनको ज़रा
गुज़रता आदमी
भुला हुआ सा रहता है
किसके गाँव में रहता हैं
कुछ ढूंढ़ता है तो क्या खोया है तेरा
मिला मुकद्दर की दुआ से
जिसको तू अपना नसीब कहता है
गवां सब जायेगा यहाँ से , ख़त्म होगी तेरी दास्ताँ
पूछो उनसे जो डटे है , क्या खो दिया
जो चिल्लाते है मौत को मार भगाने के
यहाँ रोज़ नए उपाय किये जाते है
सुनी उनकी नहीं, कभी कहानी मगर
अब मिले है तो बोल दो क्या है छुपाये
क्या ज़िन्दगी भर का दर्द ले जायेगा मौत के साथ ?
सत्य वचन