मर्यादापुरोषत्तम
सोच से परे जो है , आराम पर अड़े जो है
दूर हटके खड़े जो है
कल्पना में खोये जो है , यथार्थ से लड़े जो है ,
परिणाम से डरे जो है , सबको झूठ साबित करे जो है
खुद ही में उलझे जो है , स्वजनों को रखे धोखे में जो है
भविष्य के गर्त मे गुम जो है , सबसे मिले पर खुदी में गुम जो है
पाए ना किसीको फिर भी ढूंढे सभी को वो जो हैं
ख्याल की सीढ़ियों पर रोज़ चढ़े के गिरे वो जो है
संसार मैं है खुद को ढूढ़ने की ज़िद पर अड़े वो जो है
बुराइयों को अच्छाइयों से जीतने नाकाम कोशीश करे वो जो है सबसे जीते खुद से हारे वो जो है , रात की परछाईओ को दिन में ढूंढे वो जो है
समाज की कुरीतिया लोगो को बताये
वो जो है
आप ही खुशियां जो ढूंढे वो जो है , रास्तो पर हँसता ही मिले सबसे वो जो है
कर रहे आराम सब , पूछते ऐसा कोई जो है
तो आये आगे बढ़कर ले आशीर्वाद सबसे
कर रहे इंतज़ार सदियों से लोग यहाँ
पूछते की इस युग का है राम कहाँ
कहाँ रुका है विमान उनका या मिला नही टिकट
उन्हें हमारे युग का , या भूले बैठे दुसरे विमान में
आस हमारी टूट रही , आये जल्दी अन्यथा हममे है धैर्य कहाँ
हमने तबाह कर दी है धरती , फैला चारो ओर तिमिर
हम बन चुके है अपने ही काल
थक गए यमराज भी , उन्हें भी हमने दिया आराम
बनाये हमने नए यंत्र आराम की तलाश में ,
और अब बन चुके है दास उनके , ये ना छोड़ते हमारा साथ ,
छिड़ी है जंग जो कभी न रूकती है
यहाँ तो रोज़ मानवता हर पल इंसानियत को तरसती है
कोई भी न रुकेगा , ना थमेगा एक पल को ,
ये न त्रेता युग का समर है ये तो कलयुग का रण है
रुकेगा मानवों का ही सर्वनाश कर , भू को मरघट बनाकर
बाकी है कतार में , मौत के इंतज़ार में , कुछ आपके दरवाज़े पर खड़े है
कुछ तैयार है कूदने को मैदान में
हमे तो सूझता न कोई ऐसा जो इस भू पर कहीं है
बचा ले सबको इस विध्वंश से मानव के आतंक से
समय अभी कुछ शेष है कही थोड़ी मानवता ज़िंदा होगी
छिपी कहीं इस घने तिमिर में दिया जलाये खडी होगी
निरंकुश इच्छाओ को मिटाने के उपाय ढूंढ़ती होगी