ज्यादातर समय आप उलझे हुए हो खुद में, क्यों ऐसा है ? ऐसा इसलिए है कि हमारा मस्तिष्क शांत नहीं रह सकता , इसकी बनावट ही ऐसी है की हर वक़्त इसे कहीं न कहीं लगा होना चाहिए और अगर ऐसा नहीं है तो वह परेशान हो जाता है और बेवजह के सपने देखना शुरू कर देता है जिन्हे हम "daydreaming" अथवा दिन में स्वप्न देखना भी कहते है , मगर ऐसा नहीं है की इस कार्य के सारे फल झूठे है , अक्सर हम बच्चों को इस कार्य में लगा हुआ देखते है क्योंकि उनका आकाश खुला हुआ होता है जो की पूर्णतः विपरीत है जब हम बड़े हो जाते है और हमे जिम्मेदारियाँ घेर लेती है। माता पिता बच्चों को अक्सर डाँटते भी है इसलिए इस क्रिया की बहुत नकारात्मक छवि है हमारे समाज में , मगर बड़े होने पर इस क्रिया की बहुत सख्त ज़रुरत पड़ती है और यह हमे तब पता चलता है। असलियत क्या है यह तो हर व्यक्ति की अपनी अपनी राय है , मगर सच यही है की इस क्रिया की कमीं के कारण हम बाजार में सामान वस्तुएँ और उनको बेचने के सामान तरीके देखने को मिलते है। असलियत खोती जा रही है और नक़ल हावी है हमारे दिमाग पर , जो चलन में है उसी को एक नए रूप में पेश करना सबसे आसान रास्ता है। हमारे गीत , हमारे फिल्म , हमारे कपड़े , हमारे सोचने का तरीका , हमारे बोलने का ढंग और बाकी कितनी सारी चीज़े है जो हम आस पास देखते है मगर ध्यान नहीं देते है। सब एक रंग के होते जा रहे है , विविधता लुप्त होती जा रही है और अथक प्रयास जारी है इसको पूरी तरह समाप्त करने के लिए।
समान्यतः जब तक हमे उदहारण देकर न बताया जाए हमे अनभिज्ञ रहते है भले वो कार्य क्यों न हमारे सामने हो रहा हो , हमारी आँखे है मगर मस्तिष्क सुप्त है , वह एक ढर्रे में बहता रहता है और कुछ नया देखता है तो डर जाता है। आगे बढ़ने से कतराता है और कुछ नया करने से डरता है।
अति किसी भी ओर हो हानिकारक है, चाहे वो अच्छाई हो या बुराई , एकता या अनेकता, या फिर विवेक या मूर्खता। एक सामंजस्य , एक तालमेल की अत्यंत आवश्यकता है।
आखिर इस खाई को ख़त्म करने का रास्ता क्या है , इस समस्या का हल क्या है , क्या आगे चलकर हम सब एक जैसे ही दिखेंगे और बोलेंगे और सोचेंगे , वह दृश्य काफी भयावह होगा। पहले यह मानना होगा की यह समस्या समाज में है भले चाहे कितनी भी छोटी इसकी मात्रा हो , उसके बाद फिर आगे इसके समाधान पर चर्चा हो सकती है।
भिन्नता, विविधता और अनेकरूपता ही हमारा परिचय है , और अगर यह लुप्त हो गया तो फिर कुछ बचेगा नहीं बचाने को, या यूँ कहे की कुछ बचा कर भी कुछ हासिल नहीं होगा।