कार्यरत प्राणियों के मुखौटे
सरेआम बदनाम , वक़्त के गुलाम हैं
मौत में आराम , ज़िन्दगी से परेशान है
राहों में सो गया , कुछ पाया कुछ खो दिया
अपनों में रहा मगर, परायों सा हो गया
बेवजहा बरस गया , किसी और पे
ख्यालों से परेशान है , गुस्से का गुलाम है
जवानी बेखौफ सोया बुढ़ापा खौफ में रोया
यूँह समय कट गया , जो था वह बँट गया
सिक्को के आवाज से डरता रहा
मानो मौत का बुलावा रहा
निर्णय के जाल , क्रिया शांत
चेतना लुप्त
समय खड़ा द्वार , मिलन की आस में
अंतर रहा ढूंढ़ता , दुनिया के व्यपार में
जो है नही, वो आये कहाँ से
भ्रान्ति के वन में सत्य हो जैसे
भ्रान्ति के वन में सत्य हो जैसे