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परिणाम है कर्म का

 परिणाम है कर्म का ,उदित हुआ सूर्य मेरा 

 सच - झूठ , सब डूब गया ,  वक़्त के साथ मेरा 

 है   यही सत्य तो  सही , पर गलत कुछ है नहीं 

  करे जन आक्रोश का तमाशा , रुक भी जाओ रात मेरी 

 आग के फलक के साथ नाचेगी रात मेरी , 

बस यही है सत्य मेरा , बस यही है झूठ मेरा।  

          कुछ कमीं नहीं थी उस जगह पर अनजाना लगता था 

महीनो बीते फिर भी बेगाना सा लगता था 

  हूँ वहीं का निवासी ,   मौत जिसके घर की दासी  

यम जिसके  घर का राजा , क्रोध जिसका  पालक है 

शांति शत्रु  है उसकी , लालच उसका सेवक है 

 ईर्ष्या राज करती है वहां  , आलस  दिन  बीताता है 

सपने धोये जाते हों   निराशा के बूंदों से , अकर्मण्यता का विश्वासी  हर पहर 

तुम्हारे दुश्मनों का साथी  , असभ्य व्यव्यहार  है अपनों से 

 न वो मानता उनको अपना , न वो लगते है कुछ अपने से 






बताओ,  कौन सी राह बाकी  है 

चुना जाए किसका घर , अभी तो  रात बाकी है 

सवेरा है  रात मिटाने को , इंतज़ार  न करने देगी रात हमको 

उसके पहले  हमें  मिटायेगी  , हमारे  कल से  आज मिलवाएगी 

बुरा  हमने कहा क्या , बीती  ये,  तो सुबह हमारा  है 

इस रात के दुश्मन  हज़ार  है , दुश्मनो का हीं  किनारा है   

 झूठ क्यों नहीं बुनती , सच क्यूँ  है सुनती , सत्य तो  दुश्मन हमारा है 

                                              समाप्त 



   

























































   

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